Friday, April 25, 2014

करते थे जब मुहब्बत कोई पूछता ना था

करते थे जब मुहब्बत कोई पूछता ना था,
अदावत जब से अपनाई है तो सियासत वाले खोजते फिरते है

Friday, April 18, 2014

अब इत्र भी मलो तो मोहब्बत की बू नहीं ..


अब इत्र भी मलो तो मोहब्बत की बू नहीं ..
वो दिन हवा हुये कि पसीना गुलाब था .....!

Friday, April 11, 2014

Ye Achcha Hai ki Mere Shahr ke Logo ke Khwab Pure Nahi Hote


Ye Achcha Hai ki Mere Shahr ke Logo ke Khwab Pure Nahi Hote
Varna Har Gali me Aik TajMahal Hota

Friday, April 4, 2014

किताबें झाँकती है

किताबें झाँकती है
किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती है
महीनों अब मुलाक़ातें नही होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थी 
अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के परदे पर
बड़ी बैचेन रहती है किताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है

जो ग़ज़लें वो सुनाती थी कि जिनके शल कभी गिरते नही थे
जो रिश्तें वो सुनाती थी वो सारे उधड़े-उधड़े है
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ़्ज़ों के मानी गिर पड़े है
बिना पत्तों के सूखे टूँड लगते है वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मानी उगते नही है

जबाँ पर ज़ायका आता था सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस एक झपकी गुज़रती है
बहोत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
क़िताबों से जो ज़ाती राब्ता था वो कट-सा गया है

कभी सीनें पर रखकर लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रहल की सूरत बनाकर
नीम सज़दे में पढ़ा करते थे
छूते थे जंबीं से

वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइन्दा भी
मगर वो जो उन क़िताबों में मिला करते थे
सूखे फूल और महके हुए रूक्के
क़िताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे
अब उनका क्या होगा...!!

--- गुलज़ार