Friday, September 26, 2014

Love


बहुत समय पहले की बात है , एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था. वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी. एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी , ” बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता .”
...
” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला.

” लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की.

सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला ,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है .”

” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली.

” मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला.

अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा , बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी.

अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी, और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लाफि और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया.

फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची , और बोली
” मैं बाल ले आई बाबा .”

“बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया

” अरे ये क्या बाबा , आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली.

” अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला . ” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो.”

महिला सन्यासी की बात समझ गयी , अब उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी

Friday, September 19, 2014

हवस के सारे पुजारी ने नाक रख ली है


हवस के सारे पुजारी ने नाक रख ली है/
जला के पास की बस्ती नक़ाब रख ली है/

सुबह वो फिर से दिखा साफ़ से लिबासों में/
छुपा के जैसे किसी नें शराब रख ली है/

जहाँ में ख़ुद ही मचाता है शोर हाकिम सा/
ख़मोश मजमें में ख़ुद से ख़िताब रख ली है/

ख़ुदा ही जाने ये कबकी निभाई है हमसे/
ख़ुदी से जाल बुना और हिसाब रख ली है/

ज़माने भर के जो सबसे अज़ीम जाहिल थे/
फ़क़त दिखावे के ख़ातिर किताब रख ली है/.....
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-सलमान रिज़वी-

Friday, September 12, 2014

सीधा साधा डाकिया जादू करे महान


सीधा साधा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैली में भरे आंसू और मुस्कान ॥

घर को खोजे रात दिन घर से निकले पाँव
वो रास्ता ही खो गया जिस रास्ते था गाँव॥

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दिल ने दिल से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार॥

बच्चा बोला देखके मस्जिद आलिशान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान॥

निदा फाजली

Friday, September 5, 2014

दोस्ती जब किसी से की जाये|


दोस्ती जब किसी से की जाये|
दुश्मनों की भी राय ली जाये|

मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये|

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये|

मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाये|

बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये| 

Rahat indori