Friday, October 31, 2014

Hum narm pattoN ki shaakh the,magar

Hum narm pattoN ki shaakh the,magar...
kaate gaye haiN Itne, ki TALWAAR ho gaye...

Friday, October 24, 2014

कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई


कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई

मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई

कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई

मुझे पदने वाला पढ़े भी क्या मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या
जहाँ नाम मेरा लिखा गया वहां रोशनाई उलट गई

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
 तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई,,,,,,,,




------------------Anjaan

Friday, October 17, 2014

Firkabandi hai kahi aur kahi jaten hai,


Firkabandi hai kahi aur kahi jaten hai,
Kya zamane me panpne ki yahi bate hai."

"yu saiyad bhi ho,mirza bhi ho,afgan bhi ho,
Tum sabhi kuchh ho,ye batayo kya tum musalma bhi ho

Friday, October 10, 2014

मुश्किल काम .........असगर वजाहत

मुश्किल काम .........असगर वजाहत

जब दंगे खत्म हो गये, चुनाव हो गये, जिन्हें जीतना था जीत गये, जिनकी सरकार बननी थी बन गयी, जिनके घर और जिनके जख्म भरने थे भर गये, तब दंगा करने वाली दो टीमों की एक इत्तफाकी मीटिंग हुई। मीटिंग की जगह आदर्श थी यानी शराब का ठेका- जिसे सिर्फ चंद साल पहले से ही 'मदिरालय` कहा जाने लगा था, वहां दोनों गिरोह जमा थे, पीने-पिलाने के दौरान किसी भी विषय पर बात हो सकती है, तो बातचीत ये होने लगी कि पिछले दंगों में किसने कितनी बहादुरी दिखाई, किसने कितना माल लूटा, कितने घरों में आग लगाई, कितने लोगों को मारा, कितने बम फोड़े, कितनी औरतों को कत्ल किया, कितने बच्चों की टाँगें चीरीं, कितने अजन्मे बच्चों का काम तमाम कर दिया, आदि-आदि।

मदिरालय में कभी कोई झूठ नहीं बोलता यानी वहां कही गयी बात अदालत में गीता या कुरान पर हाथ रखकर खायी गयी कसम के बराबर होती है, इसलिए यहां जो कुछ लिखा जा रहा है, सच है और सच के सिवा कुछ नहीं है। खैरियत खैरसल्ला पूछने के बाद बातचीत इस तरह शुरू हुई। पहले गिरोह के नेता ने कहा 'तुम लोग तो जन्खे हो, जन्खे. . .हमने सौ दुकानें फूंकी हैं।' दूसरे ने कहा, 'उसमें तुम्हारा कोई कमाल नहीं है। जिस दिन तुमने आग लगाई, उस दिन तेज हवा चल रही थी. . .आग तो हमने लगाई थी जिसमें तेरह आदमी जल मेरे थे।'

बात चूंकि आग में आदमियों पर आयी थी, इसलिए पहले ने कहा, 'तुम तेरह की बात करते हो? हमने छब्बीस आदमी मारे हैं।' दूसरा बोला, 'छब्बीस मत कहो।' 'क्यों?'

'तुमने जिन छब्बीस को मारा है. . .उनमें बारह तो औरतें थीं।' यह सुनकर पहला हंसा। उसने एक पव्वा हलक में उंडेल लिया और बोला, 'गधे, तुम समझते हो औरतों को मारना आसान है?' 'हां।'

'नहीं, ये गलत है।' पहला गरजा। 'कैसे?'

'औरतों की हत्या करने के पहले उनके साथ बलात्कार करना पड़ता है, फिर उनके गुप्तांगों को फाड़ना-काटना पड़ता है. . .तब कहीं जाकर उनकी हत्या की जाती है।' 'लेकिन वे होती कमजोर हैं।'

'तुम नहीं जानते औरतें कितनी जोर से चीखती हैं. . .और किस तरह हाथ-पैर चलाती हैं. . .उस वक्त उनके शरीर में पता नहीं कहां से ताकत आ जाती है. . .' 'खैर छोड़ो, हमने कुल बाइस मारे हैं. . .आग में जलाये इसके अलावा हैं।' दूसरा बोला। पहले ने पूछा, 'बाईस में बूढे कितने थे?'

'झूठ नहीं बोलता. . .सिर्फ आठ थे।' 'बूढ़ों को मारना तो बहुत ही आसान है. . .उन्हें क्यों गिनते हो?' 'तो क्या तुम दो बूढ़ों को एक जवान के बराबर भी न गिनोगे?'

'चलो, चार बूढ़ों को एक जवान के बराबर गिन लूंगा।' 'ये तो अंधेर कर रहे हो।' 'अबे अंधेर तू कर रहा है. . .हमने छब्बीस आदमी मारे हैं. . .और तू हमारी बराबरी कर रहा है।'

दूसरा चिढ़ गया, बोला, 'तो अब तू जबान ही खुलवाना चाहता है क्या?' 'हां-हां, बोल बे. . .तुझे किसने रोका है।' 'तो कह दूं सबके सामने साफ-साफ?' 'हां. . .हां, कह दो।'

'तुमने जिन छब्बीस आदमियों को मारा है. . .उनमें ग्यारह तो रिक्शे वाले, झल्ली वाले और मजदूर थे, उनको मारना कौन-सी बहादुरी है?' 'तूने कभी रिक्शेवालों, मजदूरों को मारा है?' 'नहीं. . .मैंने कभी नहीं मारा।' वह झूठ बोला। 'अबे, तूने रिक्शे वालों, झल्ली वालों और मजदूरों को मारा होता तो ऐसा कभी न कहता।'

'क्यों?'
'पहले वे हाथ-पैर जोड़ते हैं. . .कहते हैं, बाबूजी, हमें क्यों मारते हो. . हम तो हिंदू हैं न मुसलमान. . .न हम वोट देंगे. . .न चुनाव में खड़े होंगे. . .न हम गद्दी पर बैठेंगे. . .न हम राज करेंगे. . .लेकिन बाद में जब उन्हें लग जाता है कि वो बच नहीं पायेंगे तो एक-आध को ज़ख्म़ी करके ही मरते हैं।'

दूसरे ने कहा, 'अरे, ये सब छोड़ो. . .हमने जो बाईस आदमी मारे हैं. . .उनमें दस जवान थे. . कड़ियल जवान. . . '

'जवानों को मारना सबसे आसान है।' 'कैसे? ये तुम कमाल की बात कर रहे हो!' 'सुनो. . .जवान जोश में आकर बाहर निकल आते हैं उनके सामने एक-दो नहीं पचासों आदमी होते हैं. . .हथियारों से लैस. . .एक आदमी पचास से कैसे लड़ सकता है?. . .आसानी से मारा जाता है।'

इसके बाद 'मदिरालय` में सन्नाटा छा गया, दोनों चुप हो गये। उन्होंने कुछ और पी, कुछ और खाया, कुछ बहके, फिर उन्हें धयान आया कि उनका तो आपस में कम्पटीशन चल रहा था।

पहले ने कहा, 'तुम चाहो जो कहो. . .हमने छब्बीस आदमी मारे हैं. . .और तुमने बाईस. . .' 'नहीं, यह गलत है. . .तुमने हमसे ज्यादा नहीं मारे।' दूसरा बोला। 'क्या उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो. . .हम चार नंबरों से तुमसे आगे हैं।'

दूसरे ने ट्रम्प का पत्ता चला, 'तुम्हारे छब्बीस में बच्चे कितने थे?' 'आठ थे।' 'बस, हो गयी बात बराबर।' 'कैसे?'

'अरे, बच्चों को मारना तो बहुत आसान है, जैसे मच्छरों को मारना।' 'नहीं बेटा, नहीं. . .ये बात नहीं है. . . तुम अनाड़ी हो।' दूसरा ठहाका लगाकर बोला, 'अच्छा तो बच्चों को मारना बहुत कठिन है?' 'हां।'

'कैसे?' 'बस, है।' 'बताओ न . . '

'बताया तो. . .' 'क्या बताया?'

'यही कि बच्चों को मारना बहुत मुश्किल है. . .उनको मारना जवानों को मारने से भी मुश्किल है. . .औरतों को मारने से क्या, मजदूरों को मारने से भी मुश्किल।'

'लेकिन क्यों?' 'इसलिए कि बच्चों को मारते वक्त. . .'

'हां। . .हां, बोलो रुक क्यों गये?' 'बच्चों को मारते समय. . .अपने बच्चे याद आ जाते हैं।'

असगर वजाहत


Friday, October 3, 2014

कोई जुगनू न आया खेलता-हँसता अंधेरे में,



कोई जुगनू न आया खेलता-हँसता अंधेरे में,
मैं कितनी देर तक बैठा रहा तन्हा अंधेरे में।

तुम्हारे साथ क्यों सुलगी तुम्हारे घर की दीवारें,
बुझा दो रोशनी कि सोचते रहना अंधेरे में।

अगर अंदर की थोड़ी रोशनी बाहर न आ जाती,
मैं अपने आप से टकरा गया होता अंधेरे में।

अगर खुद जल गया होता तो शायद सुबह हो जाती, 
मैं सूरज की दुआ क्यों माँगने बैठा अंधेरे में।




--------------------------Anjaan

Friday, September 26, 2014

Love


बहुत समय पहले की बात है , एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था. वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी. एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी , ” बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता .”
...
” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला.

” लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की.

सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला ,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है .”

” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली.

” मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला.

अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा , बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी.

अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी, और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लाफि और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया.

फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची , और बोली
” मैं बाल ले आई बाबा .”

“बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया

” अरे ये क्या बाबा , आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली.

” अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला . ” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो.”

महिला सन्यासी की बात समझ गयी , अब उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी

Friday, September 19, 2014

हवस के सारे पुजारी ने नाक रख ली है


हवस के सारे पुजारी ने नाक रख ली है/
जला के पास की बस्ती नक़ाब रख ली है/

सुबह वो फिर से दिखा साफ़ से लिबासों में/
छुपा के जैसे किसी नें शराब रख ली है/

जहाँ में ख़ुद ही मचाता है शोर हाकिम सा/
ख़मोश मजमें में ख़ुद से ख़िताब रख ली है/

ख़ुदा ही जाने ये कबकी निभाई है हमसे/
ख़ुदी से जाल बुना और हिसाब रख ली है/

ज़माने भर के जो सबसे अज़ीम जाहिल थे/
फ़क़त दिखावे के ख़ातिर किताब रख ली है/.....
====================
-सलमान रिज़वी-

Friday, September 12, 2014

सीधा साधा डाकिया जादू करे महान


सीधा साधा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैली में भरे आंसू और मुस्कान ॥

घर को खोजे रात दिन घर से निकले पाँव
वो रास्ता ही खो गया जिस रास्ते था गाँव॥

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दिल ने दिल से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार॥

बच्चा बोला देखके मस्जिद आलिशान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान॥

निदा फाजली

Friday, September 5, 2014

दोस्ती जब किसी से की जाये|


दोस्ती जब किसी से की जाये|
दुश्मनों की भी राय ली जाये|

मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये|

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये|

मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाये|

बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये| 

Rahat indori

Friday, August 29, 2014

हऱ शख्‍़स के चेहरे का भरम खोल रहा है


हऱ शख्‍़स के चेहरे का भरम खोल रहा है
कम्‍बख्‍़त यह आईना है सच बोल रहा है

खुशबू है कि आँधी है यह मालूम तो कर ले
आहट पे ही दरवाज़े को क्‍यूँ खोल रहा है

तू बोल रहा है किसी मज़लूम के हक़ में
इतनी दबी आवाज़ में क्‍यों बोल रहा है

पैरों को ज़मीं जिसके नहीं छोड़ती वो भी
पर अपने उड़ाने के लिए तोल रहा है

पहले उसे ईमान कहा करते थे शायद
अब आदमी सिक्‍कों में जिसे तोल रहा
-------------------Anjaan

Friday, August 22, 2014

Self Appraisal


A Little boy went to a telephone booth which was at the cash counter of a store and dialed a number. The store-owner observed and listened to the conversation:

Boy: “Lady, can you give me the job of cutting your lawn?”

Woman: (at the other end of the phone line) “I already have someone to cut my lawn.”

Boy: “Lady, I will cut your lawn for half the price than the person who cuts your lawn now.”

Woman: “I’m very satisfied with the person who is presently cutting the lawn.”

Boy: (with more perseverance) “Lady, I’ll even sweep the floor and the stairs of your house for free.”

Woman: “No, thank you.”

With a smile on his face, the little boy replaced the receiver. The store-owner, who was listening to all this, walked over to the boy.

Store-owner: “Son….I like your attitude; I like that positive spirit and would like to offer you a job.”

Boy: “No thanks.”

Store-owner: “But you were really pleading for one.”

Boy: “No Sir, I was just checking my performance at the job I already have. I am the one who is working for that lady I was talking to!”

*”This is called Self Appraisal”

Give your best and the world comes to you !!!

Friday, August 15, 2014

रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है


रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा
Kaifi azmi

Friday, August 8, 2014

डर मुझे भी लगा फ़ासला देखकर,

डर मुझे भी लगा फ़ासला देखकर,
पर में बढ़ता गया रास्ता देखकर.

ख़ुद ब ख़ुद मेरे नज़दीक आती गई,
मेरी मंज़िल मेरा हौसला देखकर.

मैं परिंदों की हिम्मत पे हैरान हूँ,
एक पिंजरे को उड़ता हुआ देखकर.

खुश नहीं हैं अॅाधेरे मेरे सोच में,
एक दीपक को जलता हुआ देखकर.

डर सा लगने लगा है मुझे आजकल,
अपनी बस्ती की आबो- हवा देखकर.

किसको फ़ुर्सत है मेरी कहानी सुने,
लौट जाते हैं सब आगरा देखकर.


--------------------अशोक रावत 

Friday, August 1, 2014

हम उसूलों पर चले दुनिया में शोहरत हो गई

हम उसूलों पर चले दुनिया में शोहरत हो गई
लेकिन अपने घर के लोगों में बग़ावत हो गई 

आँधियों में तेरी लौ से जल गई उँगली मगर 
ये तसल्ली है मुझे तेरी हिफ़ाज़त हो गई 

पहले उसका आना जाना इक मुसीबत सा लगा 
रफ़्ता रफ़्ता उस मुसीबत से मोहब्बत हो गई 

जो गवाही से थे वाबस्ता वो सब पकड़े गए
और जो मुल्ज़िम थे उन सब की ज़मानत हो गई

मेरे मेहमाँ भी थे ख़ुश ख़ुश और मैं भी मुत्मईन
उनकी पिकनिक हो गई मेरी इबादत हो गई

आज फिर दिल को जलाया मैंने उनकी याद से
आज फिर उनकी अमानत में खयानत हो गई

मेरी हालत तो नहीं सुधरी मगर इस फेर में
ये हुआ मेरी तरह उसकी भी हालत हो गई


---OM Prakash Nadeem

Friday, July 25, 2014

आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे

आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे 
दीप से दीप जला कर हम अँधेरे में रहे 

धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको 
चंद पल जब किसी एहसान के साए में रहे 

आपको हमने,हमें आप ने समझा दुश्मन 
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे 

ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है 
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे

कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे

हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था
हम कभी अपने कभी ग़ैर के खाने में रहे

------ओम प्रकाश नदीम

Friday, July 18, 2014

थोड़ा सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए

थोड़ा सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए 
उनके तमाम नेक इरादे बदल गए 

हम अपनी कैफ़ियत से सुबकदोश क्या हुए 
गुस्ताख़ आरज़ूओं के लहजे बदल गए 

बनना था जिनको हाल के हालात का बदल 
मैं उनसे पूछता हूँ वो कैसे बदल गए 

अब भी मक़ाम-ओ-मर्तबा अपनी जगह पे हैं 
लेकिन वहाँ पहुँचने के रस्ते बदल गए

जारी है अब भी मुर्दा रिवायात का सफ़र
मय्यत थी जिन पे सिर्फ़ वो काँधे बदल गए

ज़ाहिर करें जो बात वो ज़ाहिर न हो"नदीम"
इज़हार के वो तौर - तरीक़े बदल गए

--------ओम प्रकाश नदीम
सुबकदोश - मुक्त

Friday, July 11, 2014

कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या क्या हो जाऊँ

कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या क्या हो जाऊँ 
सब की ख्वाहिश है यही , उनके ही जैसा हो जाऊँ 

अब दिखावा ही मेरे जिस्म का पैराहन है 
अब अगर इसको उतारूँ तो तमाशा हो जाऊँ 

आप ने अपना बनाया तो बनाया ऐसा 
अब ये मुम्किन ही नहीं और किसी का हो जाऊँ 

तुमने पहले भी सज़ा दे के मज़ा पाया है 
तुम जो चाहो तो गुनहगार दुबारा हो जाऊँ

कुछ बड़ा और बनूँ , ऐसी तमन्ना है , मगर
और कुछ बन के बड़ा और न छोटा हो जाऊँ

फिर मेरा कोई भी सपना , न रहेगा सपना
मैं अगर काश तेरी आँख का सपना हो जाऊँ

--------ओम प्रकाश नदीम

Friday, July 4, 2014

तैरीं मोहब्बत की सज़ा में कितने ज़ुल्म उठाऊं मैं

तैरीं मोहब्बत की सज़ा में कितने ज़ुल्म उठाऊं मैं 
आह भरूँ और दर्द सहूँ चल तू ही बता मर जाऊं मैं 

दिल तो तेरी क़ुरबत में जाने कब का जल चुका है 
अब भी तुझको सुकूँ नहीं तो खुदको भी जलाऊं मैं 

***(( अय्यूब खान "बिस्मिल"))***
क़ुरबत=क़रीब होना 

Friday, June 27, 2014

नफ़रत में आज आग लगाने का मन भी है

नफ़रत में आज आग लगाने का मन भी है 
होली में मन का मैल जलाने का मन भी है 

मौसम के साथ झूम के गाने का मन भी है 
मौसम को अपने साथ नचाने का मन भी है 

थोड़ी सी भंग डाल दो होली के रंग में 
हँसने के साथ साथ हँसाने का मन भी है 

कैसा अजीब हाल है होली के दिन मेरा 
उनसे ख़फ़ा हूँ उनको मनाने का मन भी है

ये चटपटी सी चाट और ये पकौड़ियाँ
लगता है मेजबाँ का पिलाने का मन भी है

होली तो हमने खेल ली अब क्या करें"नदीम"
सर्दी भी लग रही है , नहाने का मन भी है

-----------ओम प्रकाश नदीम

Friday, June 20, 2014

धूप मेरे सर पे है , आँचल तुम्हारे पास है

धूप मेरे सर पे है , आँचल तुम्हारे पास है 
मसअला मेरा है लेकिन हल तुम्हारे पास है 

मैं तुम्हारी ही बदौलत आसमाँ पर छा गया 
जिससे मैं बादल बना वो जल तुम्हारे पास है 

तुम दिखा सकते हो मुझको अक्स मेरे दर्द का 
ऐसा वाहिद आइना , केवल तुम्हारे पास है 

दिल दिया तो दिल मिला भी क्यों परेशाँ हो सनम 
इक गया तो, दूसरा पागल तुम्हारे पास है

खो न देना प्यार का वो क़ीमती लम्हा "नदीम "
अब अमानत की तरह वो पल तुम्हारे पास है

---------ओम प्रकाश नदीम

Friday, June 13, 2014

दिल मजबुर हो रहा है तुमसे बात करने को

दिल मजबुर हो रहा है तुमसे बात करने को
पर जिद ये है की गुफ़्तगु का आगाज़ तुम करो


Guftugu ka Aagaj main ker to dun per dar ye hai
Ke tum kahin galat na samjh baitho

Friday, June 6, 2014

Unfortunate

There was a farmer who had a horse and a goat…..
One day, the horse became ill. So he called the veterinarian, who said:

"Well, your horse has a virus. He must take this medicine for three days.
I'll come back on the 3rd day and if he's not better, we're going to have to put him down.

Nearby, the goat listened closely to their conversation.

The next day, they gave the horse the medicine and left.

The goat approached the horse and said: “Be strong, my friend.
Get up or else they're going to put you to sleep!”

On the second day, they again gave the horse the medicine and left.

The goat came back and said: "Come on buddy, get up or else you're going to die!
Come on, I'll help you get up. Let's go! One, two, three..."

On the third day, they came to give the horse the medicine and the vet said:
"Unfortunately, we're going to have to put him down tomorrow. Otherwise,
the virus might spread and infect the other horses".

After they left, the goat approached the horse and said: "Listen pal, it's now or never!
Get up, come on! Have courage! Come on! Get up! Get up! That's it, slowly! Great!
Come on, one, two, three... Good, good. Now faster, come on...... Fantastic! Run, run more!
Yes! Yay! Yes! You did it, you're a champion...!!!"

All of a sudden, the owner came back, saw the horse running in the field and began shouting:
It's a miracle! My horse is cured. We must have a grand party. Let's kill the goat!!!!

The Lesson:
Nobody truly knows which employee actually deserves the merit of success, or who's actually contributing the necessary support to make things happen.

Remember:
LEARNING TO LIVE WITHOUT RECOGNITION IS A
SKILL!!!!

If anyone ever tells you that your work is unprofessional, remember:

AMATEURS BUILT THE ARK [which saved all the species]

and

PROFESSIONALS BUILT THE TITANIC [all died tragically]

Friday, May 30, 2014

रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है


रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा
Kaifi azmi

Friday, May 23, 2014

जुल्‍म फिर ज़ुल्‍म है, बढ़ता है तो मिट जाता है


जुल्‍म फिर ज़ुल्‍म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
तुमने जिस ख़ून को मक़्तल में दबाना चाहा
आज वह कूचा-ओ-बाज़ार में आ निकला

जिस्‍म मिट जाने से इन्‍सान नहीं मर जाते
धड़कनें रूकने से अरमान नहीं मर जाते
सॉंस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते
होंठ जम जाने से फ़रमान नहीं मर जाते

जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मशरिक में हो कि मग़रिब में

अमने आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे- तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के

ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है

इसलिए ऐ शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।

साहिर लुधियानवी

Friday, May 16, 2014

गाली सी चुभती है औकात की बात


गाली सी चुभती है औकात की बात

दिल दिमाग सब बाद की बात
चलो करते है पेट और खुराक की बात

मेरा ऊंचाइयो से मतलब था
तुम करने लगे जिराफ की बात

कोई रहनुमा कोई फरिश्ता कोई खुदा
ये तो अपने-अपने नकाब की बात

मुल्क में अमन था, चैन था, मोहब्बत थी
फिर उठा दी किसी ने जात की बात

तुम ओहदा कह लो हैसियत कह लो
गाली सी चुभती है औकात की बात

वो बेशक न सुने बूढ़े बाप की अपने
पर टालता नहीं कभी औलाद की बात

घर होगा, बिजली, राशन, पानी होगा
नेताजी, खूब करते हो मजाक की बात

‘प्रदीप’ ये है अन्धो की बस्ती
कोई सुनता नहीं चिराग की बात – प्रदीप तिवारी

Friday, May 9, 2014

खूबसूरत हैं आँखें तेरी रात को जागना छोड़ दे


खूबसूरत हैं आँखें तेरी रात को जागना छोड़ दे
खुद ब खुद नींद आ जायेगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे॥


कोई बच्चा तड़पता है तो माँ का दम निकलता है
मगर जब माँ तड़पती है तो फिर जम जम निकलता है॥

हसन काज़मी

Friday, May 2, 2014

किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा


किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है जायका मेरा

मैं चाहता था ग़ज़ल आस्मान हो जाये
मगर ज़मीन से चिपका है काफ़िया मेरा

मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था
मुझे सुनाते रहे लोग वाकिया मेरा

बुलंदियों के सफर में ये ध्यान आता है
ज़मीन देख रही होगी रास्ता मेरा .,.,.!!!
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राहत इन्दोरी

Friday, April 25, 2014

करते थे जब मुहब्बत कोई पूछता ना था

करते थे जब मुहब्बत कोई पूछता ना था,
अदावत जब से अपनाई है तो सियासत वाले खोजते फिरते है

Friday, April 18, 2014

अब इत्र भी मलो तो मोहब्बत की बू नहीं ..


अब इत्र भी मलो तो मोहब्बत की बू नहीं ..
वो दिन हवा हुये कि पसीना गुलाब था .....!

Friday, April 11, 2014

Ye Achcha Hai ki Mere Shahr ke Logo ke Khwab Pure Nahi Hote


Ye Achcha Hai ki Mere Shahr ke Logo ke Khwab Pure Nahi Hote
Varna Har Gali me Aik TajMahal Hota

Friday, April 4, 2014

किताबें झाँकती है

किताबें झाँकती है
किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती है
महीनों अब मुलाक़ातें नही होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थी 
अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के परदे पर
बड़ी बैचेन रहती है किताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है

जो ग़ज़लें वो सुनाती थी कि जिनके शल कभी गिरते नही थे
जो रिश्तें वो सुनाती थी वो सारे उधड़े-उधड़े है
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ़्ज़ों के मानी गिर पड़े है
बिना पत्तों के सूखे टूँड लगते है वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मानी उगते नही है

जबाँ पर ज़ायका आता था सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस एक झपकी गुज़रती है
बहोत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
क़िताबों से जो ज़ाती राब्ता था वो कट-सा गया है

कभी सीनें पर रखकर लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रहल की सूरत बनाकर
नीम सज़दे में पढ़ा करते थे
छूते थे जंबीं से

वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइन्दा भी
मगर वो जो उन क़िताबों में मिला करते थे
सूखे फूल और महके हुए रूक्के
क़िताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे
अब उनका क्या होगा...!!

--- गुलज़ार

Friday, March 28, 2014

गाँव लौटे शहर से तो सादगी अच्छी लगी

गाँव लौटे शहर से तो सादगी अच्छी लगी

हमको मिट्टी के दिये की रौशनी अच्छी लगी

बांसी रोटी सेक कर जब नाश्ते में माँ ने दी

हर अमीरी से हमें ये मुफ़लिसी अच्छी लगी

दे न पाई बाल बच्चों को जो रोटी क्या हुआ

सुनने वालों को तो मेरी शायरी अच्छी लगी

हसन काज़मी

Friday, March 21, 2014

मैं तेरी आँख में आँसू कि तरह रहता हूँ

मैं तेरी आँख में आँसू कि तरह रहता हूँ

जलते बुझते हुए जुगनू कि तरह रहता हूँ

सब मेरे चाहने वाले हैं, मेरा कोई नहीं

मैं भी इस मुल्क़ में उर्दू की तरह रहता

Friday, March 14, 2014

25 Sawaalon Ke Jawaabat



Allaah Ke Rasool Saw Ki Khidmat Me Ek Shakhs Haazir Huwa Aur Unho Ne Chand Sawaalaat Kiye.

1) Maine Sab Se Bada Aalim Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Taqwa Ikhtiyar Karo Bade Aalim Banjaoge.

2) Maine Sabse Bada Ghanii Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Qanaat Ikhtiyar Karo Bade Ghanii Banjaoge.

3) Main Sabse Bada Aadil Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Jo Chiz Tumhe Pasand Hai Wahi Logon Keliye Pasand Karo Bade Aadil Banjaoge.

4) Main Allah Ke Nazdiik Sabse Achcha Aadmi Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Logon Ko Nafa Pahunchao Achche Aadmii Banjaoge.

5) Main Allah Ka Khas Bandah Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Allah Ka Zikr Kasrat Se Karo Khas Bande Banjaoge.

6) Main Chahta Hun Mera Iman Kamil Hojae?
Aap Saw Ne Farmaya: Apne Akhlaq Achche Karlo Iman Kamil Hojaega.

7) Main Muhsinin Me Se Hona Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Allah Ki Ibadat Aise Karo Jaise Tum Usko Dekh Rahe Ho.

8) Mai Farman Bardaron Me Se Hona Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Faraaiz Ko Ada Karo Farman Bardar Banjaoge.

9) Main Allah Se Gunahon Se Paak Milna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Badaz Janabat Fawran Ghusl Karliya Karo Gunahon Se Paak Miloge.

10) Main Chahta Hun Qiyaamat Ke Din Noor Se Utho ?
Aap Saw Ne Farmaya: Apne Upar Aur Kisi Per Zulm Nah Karo Aur Noor Se Uthaae Jaoge.

11) Mujh Par Allah Qiyamat Me Raham Farmaye?
Aap Saw Ne Farmaya: Apne Aur Allah Ke Bandon Per Raham Karo Allah Tum Par Raham Karega.

12) Main Chahta Hun Mere Gunah Kam Hon?
Aap Saw Ne Farmaya: Astaghfaar Ki Kasrat Karo Gunah Kam Honge.

13) Maine Sabse Ziyadah Izzat Wala Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Makhlooq Mein Kisi Ku Apni Haajat Nah Bataoo Izzat Wale Banjaoge.

14) Main Sabse Ziyadah Taaqatwar Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Allah Par Tawakkat Ikhtiyaar Karo Taqatwar Banhjaoge.

15)Main Chahta Hun Mera Rizq Kushadah Ho?
Aap Saw Ne Farmaya: Baa Wazo Raha Karo Rizq Kushadah Hojaega.

16) Main Allah Aur Rasul Ka Mahboob Banna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Jo Allah Aur Rasool Ko Pasand Hai Tum Use Pasand Karo.

17)Main Qiyamat Mein Allah Ke Ghussah Se Bachna Chahta Hun?
Aap Saw Ne Farmaya: Allah Ki Makhlooq Par Ghussah Karna Chood Do.

18) Main Chahta Hun Meri Dua Qubul Ho?
Aap Saw Ne Farmaya: Haraam Khana Chood Do Duan Qubool Hongi.

19) Main Chahta Hun Qiyamat Me Allah Mujhe Zillat Se Bachale?
Aap Saw Ne Farmaya:  Apne Aap Ko Zina Se Bachalo Zillat Se Bach Jaoge.

20) Qiyamatmein Allah Mere Aiboon Ko Chupale?
Aap Saw Ne Farmaya: Apne Bhaiyon Ke Aiboon Ko Chupalo Allah Tumhare Aiboon Ko Chupalega.

21) Gunahon Se Kiyaa Chiz Najaat Deti Hai?
Aap Saw Ne Farmaya: Aansun Tawazu Amraan

22) Sabse Azim Neki Kiya Hai?
Aap Saw Ne Farmaya: Achche Akhlaaq, Tawazu, Musibat Par Sabr.

23) Sabsebadi Burai Kiya Hai?
Aap Saw Ne Farmaya: Bad Akhlaaqi Aur Bukh

24) Allah Ke Ghusseh Ko Duniya Wo Aakhirat Men Thanda Karnewali Chizkiya Hia?
Aap Saw Ne Farmaya: Chupke Chupke Sadqah Karna Aur Silah Rahmi Karna

25) Jahannum Ki Aag Ko Qiyamat Ke Din Kiya Chiz Bujhaegi?
Aap Saw Ne Farmaya: Dunya Mein Dukhon Aur Taklifon Par Sabr Karna.