Friday, July 26, 2013

Na Hathi hai...Whan Paidal hi Jana Hai

एक राजा ने सोचा कि उसकी सभा में इतने विद्वान हैं,
लेकिन उनके महत्व का पता तभी चलेगा, जब साथ में कोई
मूर्ख भी हो। अंधेरे में ही प्रकाश का मूल्य पता चलता है।
इसलिए मंत्री से कहा कि ढिंढोरा पिटवा दो कि मैं
दरबार में एक मूर्ख व्यक्ति रखना चाहता हूं। उसे हर
प्रकार की राजकीय सुविधाएं मिलेंगी। अगले ही दिन
अनेक प्रार्थना पत्र आ गए। आखिर एक ऐसे
व्यक्ति को चुना गया, जो उसी डाल को काट रहा था,
जिस पर वह बैठा था। तुरंत दरबार में उसकी नियुक्ति कर
ली गई और उसके सीने पर महामूर्ख
का बिल्ला लगा दिया गया।
राजा जब भी परेशान होता, उस मूर्ख को बुलाता,
उसकी बातें सुन कर हंसता और अपना दिल हल्का कर लेता।
दिन बीतते गए। एक दिन मूर्ख को संदेश
मिला कि राजा उसे बुला रहा है। वह भागता हुआ पहुंचा।
देखा कि राजा पृथ्वी पर लेटा हुआ है। चारो तरफ महल के
लोग गंभीर मुद्रा में खड़े हैं। मूर्ख ने पूछा, 'महाराज! आप
नीचे क्यों लेटे हैं?' राजा ने कहा, 'मैं जा रहा हूं।'
मूर्ख बोला, 'अरे! तो घोड़े पर बैठ कर जाइए, जमीन पर
क्यों लेटे हैं?'
राजा : जहां मैं जा रहा हूं, वहां कोई और साथ नहीं जाता,
घोड़ा भी नहीं।
मूर्ख : कम से कम रानी जी को तो ले जाएं।
राजा : वह भी नहीं जा सकतीं, मुझे अकेले ही जाना होगा।
मूर्ख : अच्छा, तो कुछ हीरे-मोती ही साथ रख लें, जरूरत के
वक्त काम आएंगे।
राजा : जहां मैं जहां रहा हूं, वहां कुछ भी लेकर
नहीं जा सकता।
मूर्ख : कमाल है, अगर सब कुछ यहीं छोड़ कर जाना है तो आप
जा ही क्यों रहे हैं?
राजा : अपनी इच्छा से वहां का जाना टाल नहीं सकता,
एक न एक दिन वहां सबको जाना होता है।
मूर्ख : अच्छा ठीक है, जब वापिस आएंगे तो भेंट होगी।
राजा : नहीं मूर्खराज, जहां जा रहा हूं वहां से कोई
वापिस नहीं आता।
मूर्ख : तो महाराज, क्या आपको मालूम
नहीं था कि वहां जाना पड़ेगा?
राजा : मालूम था।
मूर्ख : जब मालूम ही था तो यहां दिन-रात इतना धन
क्यों बटोरते रहे? यह कहने के बाद मूर्ख कुछ देर चुपचाप
वहां खड़ा रहा, फिर महामूर्ख का अपना बिल्ला उतार
कर उसे राजा के सीने पर टांक कर वहां से चला गया।
यह सृष्टि हमारी इच्छा से नहीं बनी। हमारा जन्म
भी हमारी इच्छा से नहीं हुआ। फिर हम सब मृत्यु और
विनाश को लेकर इतने चिंतित क्यों रहते हैं? किसी क्षण
यदि इस सृष्टि को समाप्त हो जाना है, तो उसके लिए
भी चिंता क्यों? यह न हमारी इच्छा से बनी है, न
हमारी आशंकाओं के कारण समाप्त होगी।...

Friday, July 19, 2013

Bhai

‎1 ladki k paas ek

unknown call aayi..

.
.
.
Ladka:- do u have a bf ??
.
.
Ladki:- yes......b ut
who r u ??
.
.
Ladka:- tera bhai.... ruk ghar aa k batata hu..
.
.
.
after few secnd once again unknown call
.
.
Ladka:- do u have a bf ??
.
.
Ladki:- no i dont know.... :(
ladka:- to mai kaun hu ?? :(
Ladki:- ohh sorry jaan maine socha bhai
hai... :(
.
Ladka:- mai bhai hi hu..... :@
"bas aaj to tu gayi...... :p :D

Friday, July 12, 2013

Masjid Or Mandir

This true incident happened in the village near by Meerut before 1947. There was a dispute between a Hindu and Muslim man over a piece of Land. Muslim man was saying it his land and Hindu man was saying it belong to him. Later this small dispute was converted in a communal dispute, some Hindu people joined the hand with the Hindu man and some Muslim with the Muslim Man. Muslim were they built Masjid there and Hindu were saying there built Temple there. No was agree less than that.

The case reached to court.The judge was wondering how to decide whose land it is actually. He said to each  group is there any one else whose decision will accept both parties.  Both group said in equal voice there is a Maulvi who lives near by. We both will accept his decision whatever he decide.

Muslim group was more than happy cause their judge is a Muslim now. And he'll give the decision in their favor. That Mauli Sahab was called in court the very next day.

The Maulvi Sahab gives the following statement :- The land belongs to Hindu group and Muslim group is on wrong path.


The Judge given the verdict : Muslim lost the case but Islam won.