सहरा-पसंद हो के सिमटने लगा हूँ मैं
अँदर से लग रहा हूँ कि बँटने लगा हूँ मैं
क्या फिर किसी सफ़र पे निकलना है अब मुझे
दीवारो-दर से क्यों ये लिपटने लगा हूँ मैं
आते हैं जैसे- जैसे बिछड़ने के दिन करीब
लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूँ मैं
क्या मुझमें एहतेजाज की ताक़त नहीं रही
पीछे की सिम्त किस लिए हटने लगा हूँ मैं
फिर सारी उम्र चाँद ने रक्खा मेरा ख़याल
एक रोज़ कह दिया था कि घटने लगा हूँ मैं
उसने भी ऐतबार की चादर समेट ली
शायद ज़बान दे के पलटने लगा हूँ मैं
Friday, October 28, 2011
Tuesday, October 18, 2011
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊँ
चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ
शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊँ
------- मुनव्वर राना
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊँ
चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ
शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊँ
------- मुनव्वर राना
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