Friday, October 3, 2014

कोई जुगनू न आया खेलता-हँसता अंधेरे में,



कोई जुगनू न आया खेलता-हँसता अंधेरे में,
मैं कितनी देर तक बैठा रहा तन्हा अंधेरे में।

तुम्हारे साथ क्यों सुलगी तुम्हारे घर की दीवारें,
बुझा दो रोशनी कि सोचते रहना अंधेरे में।

अगर अंदर की थोड़ी रोशनी बाहर न आ जाती,
मैं अपने आप से टकरा गया होता अंधेरे में।

अगर खुद जल गया होता तो शायद सुबह हो जाती, 
मैं सूरज की दुआ क्यों माँगने बैठा अंधेरे में।




--------------------------Anjaan

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