Friday, February 22, 2013

चलो आओ कि हम मिल कर वतन पर जान देते हैं

हम पर अब इस लिए ख़ंजर नहीं फेंका जाता

ख़ुश तालाब में कंकर नहीं फेंका जाता

उसने रक्खा है हिफ़ाज़त से हमारे ग़म को

औरतों से कभी ज़ेवर नहीं फेंका जाता

मेरे अजदाद ने रोके हैं समन्दर सारे

मुझसे तूफ़ान में लंगर नहीं फेंका जाता

लिपटी रहती है तेरी याद हमेशा हमसे

कोई मौसम हो ये मफ़लर नहीं फेंका जाता

जो छिपा लेता हो दीवार की उरयानी को

दोस्तो ऐसा कलंडर नहीं फेंका जाता

गुफ़्तगू फ़ोन पे हो जाती है ‘राना’ साहिबअब

किसी छत पे कबूतर नहीं फेंका जाता


-------------Munawwar Rana


चलो आओ कि हम मिल कर वतन पर जान देते हैं, 
बहुत आसान है, कमरे में वन्देमातरम कहना ........"(मुनव्वर साहिब)

मुनव्वर साहिब को हमारा जवाब :-

जान देने से भला कौन सी जंग जीती जाती है,
दुश्मनों की जान लेकर ही विजयी माला आती है।........'(पीयूष त्रिपाठी)

No comments:

Post a Comment