हम पर अब इस लिए ख़ंजर नहीं फेंका जाता
ख़ुश तालाब में कंकर नहीं फेंका जाता
उसने रक्खा है हिफ़ाज़त से हमारे ग़म को
औरतों से कभी ज़ेवर नहीं फेंका जाता
मेरे अजदाद ने रोके हैं समन्दर सारे
मुझसे तूफ़ान में लंगर नहीं फेंका जाता
लिपटी रहती है तेरी याद हमेशा हमसे
कोई मौसम हो ये मफ़लर नहीं फेंका जाता
जो छिपा लेता हो दीवार की उरयानी को
दोस्तो ऐसा कलंडर नहीं फेंका जाता
गुफ़्तगू फ़ोन पे हो जाती है ‘राना’ साहिबअब
किसी छत पे कबूतर नहीं फेंका जाता
-------------Munawwar Rana
चलो आओ कि हम मिल कर वतन पर जान देते हैं,
बहुत आसान है, कमरे में वन्देमातरम कहना ........"(मुनव्वर साहिब)
मुनव्वर साहिब को हमारा जवाब :-
जान देने से भला कौन सी जंग जीती जाती है,
दुश्मनों की जान लेकर ही विजयी माला आती है।........'(पीयूष त्रिपाठी)
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