Friday, August 29, 2014

हऱ शख्‍़स के चेहरे का भरम खोल रहा है


हऱ शख्‍़स के चेहरे का भरम खोल रहा है
कम्‍बख्‍़त यह आईना है सच बोल रहा है

खुशबू है कि आँधी है यह मालूम तो कर ले
आहट पे ही दरवाज़े को क्‍यूँ खोल रहा है

तू बोल रहा है किसी मज़लूम के हक़ में
इतनी दबी आवाज़ में क्‍यों बोल रहा है

पैरों को ज़मीं जिसके नहीं छोड़ती वो भी
पर अपने उड़ाने के लिए तोल रहा है

पहले उसे ईमान कहा करते थे शायद
अब आदमी सिक्‍कों में जिसे तोल रहा
-------------------Anjaan

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