हवस के सारे पुजारी ने नाक रख ली है/
जला के पास की बस्ती नक़ाब रख ली है/
सुबह वो फिर से दिखा साफ़ से लिबासों में/
छुपा के जैसे किसी नें शराब रख ली है/
जहाँ में ख़ुद ही मचाता है शोर हाकिम सा/
ख़मोश मजमें में ख़ुद से ख़िताब रख ली है/
ख़ुदा ही जाने ये कबकी निभाई है हमसे/
ख़ुदी से जाल बुना और हिसाब रख ली है/
ज़माने भर के जो सबसे अज़ीम जाहिल थे/
फ़क़त दिखावे के ख़ातिर किताब रख ली है/.....
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-सलमान रिज़वी-
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