Friday, July 18, 2014

थोड़ा सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए

थोड़ा सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए 
उनके तमाम नेक इरादे बदल गए 

हम अपनी कैफ़ियत से सुबकदोश क्या हुए 
गुस्ताख़ आरज़ूओं के लहजे बदल गए 

बनना था जिनको हाल के हालात का बदल 
मैं उनसे पूछता हूँ वो कैसे बदल गए 

अब भी मक़ाम-ओ-मर्तबा अपनी जगह पे हैं 
लेकिन वहाँ पहुँचने के रस्ते बदल गए

जारी है अब भी मुर्दा रिवायात का सफ़र
मय्यत थी जिन पे सिर्फ़ वो काँधे बदल गए

ज़ाहिर करें जो बात वो ज़ाहिर न हो"नदीम"
इज़हार के वो तौर - तरीक़े बदल गए

--------ओम प्रकाश नदीम
सुबकदोश - मुक्त

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