Friday, July 25, 2014

आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे

आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे 
दीप से दीप जला कर हम अँधेरे में रहे 

धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको 
चंद पल जब किसी एहसान के साए में रहे 

आपको हमने,हमें आप ने समझा दुश्मन 
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे 

ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है 
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे

कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे

हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था
हम कभी अपने कभी ग़ैर के खाने में रहे

------ओम प्रकाश नदीम

No comments:

Post a Comment