आग से आग लगा कर वो उजाले में रहे
दीप से दीप जला कर हम अँधेरे में रहे
धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको
चंद पल जब किसी एहसान के साए में रहे
आपको हमने,हमें आप ने समझा दुश्मन
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे
ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे
कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे
हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था
हम कभी अपने कभी ग़ैर के खाने में रहे
------ओम प्रकाश नदीम
दीप से दीप जला कर हम अँधेरे में रहे
धूप बेहतर थी ये एहसास हुआ तब हमको
चंद पल जब किसी एहसान के साए में रहे
आपको हमने,हमें आप ने समझा दुश्मन
हम भी धोके में रहे आप भी धोके में रहे
ये ख़रीदार की क़िस्मत नहीं चालाकी है
ये जो ईमान भी तुम बेच के घाटे में रहे
कोई किरदार भी अंजाम को पहुँचा है तेरा?
कोई कब तक तेरे बेसूद फ़साने में रहे
हम तो शतरंज के मोहरे थे हमारा क्या था
हम कभी अपने कभी ग़ैर के खाने में रहे
------ओम प्रकाश नदीम
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