तैरीं मोहब्बत की सज़ा में कितने ज़ुल्म उठाऊं मैं
आह भरूँ और दर्द सहूँ चल तू ही बता मर जाऊं मैं
दिल तो तेरी क़ुरबत में जाने कब का जल चुका है
अब भी तुझको सुकूँ नहीं तो खुदको भी जलाऊं मैं
***(( अय्यूब खान "बिस्मिल"))***
क़ुरबत=क़रीब होना
आह भरूँ और दर्द सहूँ चल तू ही बता मर जाऊं मैं
दिल तो तेरी क़ुरबत में जाने कब का जल चुका है
अब भी तुझको सुकूँ नहीं तो खुदको भी जलाऊं मैं
***(( अय्यूब खान "बिस्मिल"))***
क़ुरबत=क़रीब होना
No comments:
Post a Comment