Friday, July 4, 2014

तैरीं मोहब्बत की सज़ा में कितने ज़ुल्म उठाऊं मैं

तैरीं मोहब्बत की सज़ा में कितने ज़ुल्म उठाऊं मैं 
आह भरूँ और दर्द सहूँ चल तू ही बता मर जाऊं मैं 

दिल तो तेरी क़ुरबत में जाने कब का जल चुका है 
अब भी तुझको सुकूँ नहीं तो खुदको भी जलाऊं मैं 

***(( अय्यूब खान "बिस्मिल"))***
क़ुरबत=क़रीब होना 

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